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ई-कॉमर्स साइट्स पर अब नहीं चलेगी फर्जी रिव्यू की दुकान

Sanjeev Kumar Jha
Sanjeev Kumar Jha May 30 2022 - 7 min read
ई-कॉमर्स साइट्स पर अब नहीं चलेगी फर्जी रिव्यू की दुकान
ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर ग्राहक अक्सर खरीदारी से ठीक पहले उस प्रोडक्ट का रिव्यू देखते हैं। ऐसे में अगर रिव्यू भी बिकाऊ निकला या फर्जी हुआ, तो ग्राहक ठगे जाते हैं। यह फर्जीवाड़ा रोकने के लिए उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने एक बड़ी पहल की है।

भारत सरकार के खाद्य, उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत आने वाले उपभोक्ता मामलोें के विभाग (डीओसीए) ने ई-कॉमर्स वेबसाइट पर फर्जी रिव्यू पर नकेल कसने की तैयारी की है। विभाग नेे एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑॅफ इंडिया (एएससीआई) के साथ मिलकर बीते शुक्रवार को इस विषय सेे संबंधित सभी पक्षकारों की एक बैठक बुलाई। इस बैठक में मुख्य रूप से इस बारे में चर्चा हुई कि फर्जी और भ्रामक रिव्यू का ग्राहकोें पर क्या असर होता है, उसकी तीव्रता क्या है और इसे रोकने के लिए क्या किया जाना जरूरी है।

उपभोक्ता मामलों के विभाग की इस बैठक में फ्लिपकार्ट, अमेजन, टाटा संस और रिलायंस रिटेल जैसी दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियों के अलावा उपभोक्ता फोरम, विधि विश्वविद्यालय, कानूून के जानकार और ग्राहक अधिकार कार्यकर्ताओं के अलावा फिक्की व सीआईआई जैसे उद्योग संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। डीओसीए के सचिव रोहित कुमार सिंह ने इन सभी को इस बैठक में शामिल होने के लिए लिखा था। सिंह ने सभी साझेदारों को इस आशय के पत्र के साथ यूरोेपीय आयोग द्वारा इस वर्ष जनवरी में भेजी गई एक विज्ञप्ति भी साझा की थी। उस विज्ञप्ति में यूरोपीय देशों की 223 बड़ी ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर ऑनलाइन ग्राहक रिव्यू के नतीजे विस्तार से दिए गए थे।

इन नतीजों के आधार पर यूरोपीय आयोग का कहना था कि कम से कम 55 प्रतिशत वेबसाइट्स पर यूरोपीय यूनियन द्वारा निर्धारित वाणिज्यिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो रहा है। सिंह ने कहा कि ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा ग्राहकोें को सभी जानकारियां सही-सही देना उपभोक्ताओं का अधिकार है। उपभोक्ता संरक्षण कानून, 2019 के तहत यह जानना ग्राहकों का अधिकार है कि ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर फर्जी और भ्रामक रिव्यूज से उनके इस अधिकार का कितना हनन हो रहा है।
सिंह का कहना था कि ई-कॉमर्स वेबसाइट्स के माध्यम से खरीदारी करने वाले ग्राहकों को सामानोें को छूकर देखने या जांच-परख करने का मौका नहीं मिलता है। ऐसे में वे उन्हीं ग्राहकों के रिव्यू पर सबसे ज्यादा निर्भर करते हैं, जिन्होंने वह आइटम पहले उसी वेबसाइट से खरीदा है। अब क्योंकि रिव्यूज से लोगों की खरीदारी आदतें सीधे प्रभावित होती हैं और इससे ग्राहकों के अधिकारों पर भी प्रत्यक्ष असर पड़ता है, तो यह बेहद जरूरी हो गया है कि रिव्यूज की गहराई और गंभीरता से जांच-पड़ताल की जाए।

इस बैठक में विभाग की अतिरिक्त सचिव निधि खरे तथा संयुक्त सचिव अनुपम मिश्रा भी मौैजूद थे। बैठक में शामिल सभी पक्षों का मानना था कि इस मुद्दे पर प्रमुखता से ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है। ग्राहकोें के हितों की रक्षा के लिए फर्जी रिव्यू पर कड़ा नियंत्रण होना चाहिए और इसके लिए एक उचित फ्रेमवर्क विकसित किया जा सकता है। बैठक में शामिल सभी पक्षों की राय थी कि इस तरह के फर्जी रिव्यू पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार एक फ्रेमवर्क या ढांचा तैयार करेगी। डीओसीए इसके लिए सबसे पहले ई-कॉमर्स वेबसाइट्स द्वारा फर्जी रिव्यू को रोकने के मौजूदा तंत्र और तरीकों का अध्ययन करेगा। इस अध्ययन के बाद विभाग उन तरीकों के साथ एक ढांचा विकसित करेगा, जिनके जरिये फर्जी रिव्यू पर पूरी तरह लगाम लगाई जा सकेगी।

फर्जी रिव्यू की पहचान बड़ा मुद्दा

इस बारे में डीओसीए के सचिव ने कहा कि रिव्यू करने वालोें की पहचान और उनकी प्रामाणिकता तथा रिव्यू को लेकर खुद उस ई-कॉमर्स वेबसाइट की जिम्मेदारी, ये दो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। इतना ही नहीं, ई-कॉमर्स वेबसाइट्स अपने ग्राहकों को यह जानकारी भी ठीक से नहीं दे रही हैं कि वे ग्राहकों के लिए सबसे प्रासंगिक रिव्यू की पहचान कैसे करती हैं। इस बैठक में ई-कॉमर्स कंपनियों का दावा था कि फर्जी रिव्यू को पकड़नेे का उनका फ्रेमवर्क पहले से ही काम कर रहा है। इस मुद्दे पर अगर कोई लीगल फ्रेमवर्क या कानूनी ढांचा तैयार किया जाता है, तो वे इस प्रक्रिया में शामिल होना चाहेंगी।

बैठक में एएससीआई की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) मनीषा कपूर ने फर्जी रिव्यू की कैटेगरी और उपभोक्ताओं के हितों पर उसके होने वाले असर पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि खरीदे गए रिव्यू, अपुष्ट रिव्यू, और प्रोत्साहन देकर लिए गए रिव्यू के बारे में वेबसाइट पर खुलासा नहीं होने की चुनौतियां बहुत बड़ी हैं। इन चुनौतियों के चलते ग्राहक असली और फर्जी रिव्यूू में अंतर ही नहीं कर पाते हैं।

क्या है फर्जी रिव्यू

किसी भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से खरीदारी करने वाले ग्राहक सबसे पहले उस प्रोडक्ट के बारे में उसे खरीद चुके ग्राहकों की रेटिंग देखते हैं। अक्सर किसी प्रोडक्ट के बारे में कम जानकारी रखने वाले ग्राहक किसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर जाकर यह देखना और जानना पसंद करते हैं कि जो प्रोडक्ट वह खरीदना चाह रहे हैं, उसके बारे में पूर्ववर्ती ग्राहकों की राय क्या है। उस प्रोडक्ट को खरीद चुके ग्राहकों ने स्टार रेटिंग के माध्यम से बताया हुआ होता है कि उस प्रोडक्ट को उन्होंने कितना पसंद या नापसंद किया है।

यह स्टार रेटिंग अमूमन एक से पांच तक की होती है। इसमें बताया गया होता है कि प्रोडक्ट कैसा है, उसकी कौन सी बात उसे खरीद चुके ग्राहकों को पसंद आई और उसमें क्या संभावित कमियां हैं। ई-कॉमर्स वेबसाइट पर जिस प्रोडक्ट को सबसे अधिक ग्राहकों द्वारा सबसे ज्यादा रेटिंग दी जाती है, नए ग्राहक मानकर चलते हैं कि वह प्रोडक्ट और उससे जुड़ी अन्य सेवाएं उसी कैटेगरी के दूसरे प्रोडक्ट से बेहतर हैं।

प्रोडक्ट और कंपनी के बारे में पूर्ववर्ती ग्राहकों की यह राय इसलिए बेहद महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वह नए ग्राहक के फैसलों को सीधे प्रभावित करती है। यही काम अगर ग्राहक ने अपने मन से, सही-सही और बिना किसी भेदभाव के किया होता है तो उसे असली रिव्यू कहते हैं। लेेकिन कई बार कोई विक्रेता किसी को यह लालच देता है कि अगर उसके प्रोडक्ट के बारे में उसने अच्छी-अच्छी बातें लिखीं भले ही वह प्रोडक्ट अच्छा हो या नहीं हो तो उसे वह या कोई दूसरा प्रोडक्ट बिल्कुल फ्री में दिया जाएगा।

स्टार का खेल

यहीं से एक नया फर्जीवाड़ा शुरू होता है। बाजार में ऐसी कंपनियां आ गई हैं, जो ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर विक्रेताओं से पैसे लेकर फर्जी रिव्यू लिखती हैं। रिव्यू लिखने वाले ये लोग असल में उस प्रोडक्ट के ग्राहक नहीं होते, बल्कि पैसे लेेकर रिव्यू लिखते हैं। क्योंकि उन्हें अच्छे रिव्यू के लिए भुगतान किया जाता है, लिहाजा वे कमतर गुणवत्ता वाले उत्पादोें को भी बेहतर बताते और अधिक से अधिक स्टार रेटिंग देते हैं। ऐसे में कंपनियों के साथ भी खूब भेदभाव होता है। कुछ विक्रेता कंपनियां रिव्यू दिलाने वाली कंपनियों को मोटी फीस देती हैं, लिहाजा उनके उत्पादों को अच्छा ही दिखाया जाता है। इससे ग्राहक भ्रमित होते हैं और उनकी खरीदारी राय प्रभावित होती है। कई बार कंपनियां अपनेे स्पर्धियों से आगे निकलने या उनकी बिक्री घटाने के लिए भी फर्जी रिव्यू का सहारा लेती हैं।

उल्लेखनीय है कि सरकार कई माध्यमों से ई-कॉमर्स कंपनियों पर नकेल कस रही हैै। हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार ऐसे नियम लाने पर विचार कर रही है कि ई-कॉमर्स कंपनियां अपने पसंदीदा विक्रेताओं को अतिरिक्त सुविधाएं देने के फेर में शेष के साथ भेदभाव नहीं कर पाएं। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) इस दिशा में पिछले कुछ समय से बेहद सक्रिय है। सीसीआई ने हाल ही में प्रासंगिक बाजार की व्याख्या से संबंधित अपनेे नियमों में थोड़ा बदलाव किया। इस बदलाव के बाद कई डिजिटल प्लेटफॉर्म्स सीसीआइ की जांच के दायरे में आ गए।

कार्रवाई कर रही अमेजन

भारत में परिचालन कर रही शीर्ष ई-कॉमर्स कंपनियों में एक अमेजन ने कहा है कि वह चार कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। अमेजन का आरोप है कि ये कंपनियां उसकी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर जान-बूझकर फर्जी रिव्यूू डाल रही हैं। इनमें से तीन कंपनियों के पास करीब साढ़े तीन लाख रिव्यूअर यानी समीक्षक हैं।
ये कंपनियां अमेजन के प्लेटफॉर्म पर विक्रेताओं और ऐसे तथाकथित फर्जी समीक्षकों के बीच अघोषित-अलिखित ब्रोकर की तरह काम करती हैं। ये कंपनियां उन विक्रेताओं को फर्जी रिव्यू मुहैया कराती हैं और इसके बदले उनसेे मोटी फीस वसूलती हैं। हालांकि अमेजन का यह भी कहना है कि कई बार विक्रेताओं को रिव्यूू के फर्जी होने की पहले से जानकारी नहीं होती है।

इसके साथ ही इस ई-कॉमर्स दिग्गज ने कहा है कि फर्जी रिव्यू लिखवाने वाली कंपनियों ने उसके प्लेटफॉर्म को मुख्य रूप से अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप, जापान और कनाडा में निशाना बनाया है। ऐसी तीन कंपनियों के खिलाफ अमेजन ने पहले ही कार्रवाई की थी और अब चौथी के खिलाफ शुरू की गई है। अमेजन के अनुसार वर्ष 2020 में उसने ऐसे 20 करोड़ से अधिक रिव्यू प्राकशित होने सेे रोक दिए, जिनके फर्जी होनेे का अंदेशा था।

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