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ऑर्गेनिक फूड कारोबार में उतरा अमूल

Sanjeev Kumar Jha
Sanjeev Kumar Jha Jun 01 2022 - 5 min read
ऑर्गेनिक फूड कारोबार में उतरा अमूल
गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के एमडी आरएस सोढ़ी ने कहा कि कंपनी दुग्ध क्रांति की सफलता को ऑर्गेनिक फूड सेग्मेंट में दोहराना चाहती है।

देश के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय डेयरी ब्रांड्स में एक अमूल ने ऑर्गेनिक फूड कारोबार में कदम रखा है। कंपनी ने पिछले दिनों ऑर्गेनिक गेहूं का आटा लांच किया। अमूल ब्रांड की मार्केटिंग करने वाली कंपनी गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (जीसीएमएमएफ) ने एक बयान में कहा कि ऑर्गेनिक फूड सेग्मेंट में कंपनी के प्रोडक्ट पोर्टफोलियो की शुरुआत ऑर्गेनिक गेहूं आटा से हो रही है। कंपनी स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए यह उत्पाद पेश कर रही है।

अमूल ऑर्गेनिक आटा की बिक्री अमूल पार्लर के अलावा देशभर के बड़े रिटेल स्टोर्स में होगी। इसकी शुरुआत बुधवार यानी पहली जून, 2022 से गुजरात से हो रही है। इसी दिन से यह प्रोडक्ट ऑनलाइन माध्यम से दिल्ली-एनसीआर, मुंबई व पुणे के ग्राहकों के लिए भी उपलब्ध रहेगा। इसे एक किलोग्राम और पांच किलोग्राम के दो पैक में पेश किया गया है। कंपनी ने एक किलो ऑर्गेनिक गेहूं आटा की कीमत 60 रुपये और पांच किलोे की कीमत 290 रुपये रखी है।
कंपनी अमूल ऑर्गेनिक आटा का उत्पादन त्रिभुवन दास पटेल मोगर फूड कांप्लैक्स स्थित अत्याधुनिक प्रोसेसिंग यूनिट में कर रही है। जीसीएमएमएफ के अनुसार इसके उत्पादन में प्रक्रिया संबंधी सभी शर्तों का पालन हो रहा है। इस ऑर्गेनिक आटा को बाजार में लाने से पहले कई चरणों में प्रयोगशाला परीक्षणों से गुजारा जा रहा है, ताकि भारत सरकार द्वारा ऑर्गेनिक उत्पादों के लिए निर्धारित मानदंडों का पूरी तरह पालन हो सके।

आने वाले दिनों में कंपनी इस पोर्टफोलियो में मूंग दाल, तूर या अरहर दाल, चना दाल व बासमती चावल भी शामिल करेगी। जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक (एमडी) आरएस सोढ़ी ने इस बारे में कहा कि कंपनी ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने वाले किसानों का एक संगठन बनाना चाहती है। कंपनी जिस तरह से दुग्ध क्रांति की सफलता का सूत्रधार बनी, वही मॉडल वह ऑर्गेनिक सोर्सिंग में दोहराना चाहती है। इससे ऑर्गेनिक माध्यम से खेती करने वालेे किसानों की आय बढ़ेगी।इसके साथ ही इससे ऑर्गेनिक फूड उद्योग में एकाधिकार की संभावनाएं खत्म होंगी व सही मायनों में इसका लोकतंत्रीकरण हो सकेगा।

वर्तमान में ऑर्गेनिक फूड उद्योग की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसके किसानों और बाजार का कोई सीधा संपर्क नहीं है। दूसरी तरफ, ऑर्गेनिक फूड की बिक्री से पहले उसे भारत सरकार द्वारा प्रमाणित प्रयोगशाला के परीक्षण से भी गुजरना होता है, ताकि बिक्री से पहले यह सुनिश्चित हो सके कि वह ऑर्गेनिक फूड ही है, जैसा कि विक्रेता दावा कर रहा है। दिक्कत यह है कि वर्तमान में इस तरह के परीक्षण किसानों की उम्मीदों से अधिक खर्चीले हैं।

जीसीएमएमएफ का कहना है कि ऑर्गेनिक फूड सेक्टर की इन्हीं दिक्कतों को देखते हुए एक तरफ वह किसानों और इसके बाजार के बीच एक माध्यम तैयार कर रही है। दूसरी तरफ प्रयोगशाला परीक्षणों को सुलभ व किफायती बनानेे के लिए वह देशभर में पांच परीक्षण प्रयोगशालाएं भी स्थापित करेगी। इनमें से पहली प्रयोगशाला की स्थापना गुजरात के अहमदाबाद में अमूल फेडरेशन डेयरी परिसर में हो रही है।

क्या होता है ऑर्गेनिक फूड

ऑर्गेनिक फूड असल में वैसे प्रोडक्ट होते हैं, जिनके इन्ग्रीडिएंट्स यानी उनमें मिले हुए अवयवों की, या स्वयं उनकी खेती में मानव-निर्मित केमिकल्स का उपयोग नहीं होता है। इनके उत्पादन में यूरिया व डीएपी जैसी कृत्रिम रासायनिक खाद समेत अन्य जीवाणु या कीटाणु नाशक रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल कतई नहीं किया जाता है। इनकी खेती के लिए प्राकृतिक पदार्थों से बनी खाद का ही उपयोग होता है। इससे इनके पोषक तत्वों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता और इनके माध्यम से शरीर में कोई हानिकारक केमिकल भी नहीं जाता है।

इसी तरह, दूध या पोल्ट्री उत्पादों के मामले में ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के लिए जानवरों को किसी तरह का एंटीबायोटिक या ग्रोथ हॉर्मोन इंजेेक्शन जैसा कुछ नहीं दिया जाता, ताकि इनके उत्पाद में कृत्रिम रसायन का कोई भी अंश नहीं जाए। सामान्य तौर पर इनके प्रयोग से दुधारू पशुओं में दूध अधिक आता है। पोल्ट्री उत्पादों के मामले में इन पदार्थों के उपयोग से उन जीवों का शारीरिक विकास तेज हो जाता है, जिससे वे उपभोग के लिए जल्दी तैयार हो जाते हैं।

कोरोना संकट के दौरान बढ़ा महत्व

कोरोना संकट के पिछले दो वर्षों के दौरान लोगोें ने ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थों का महत्व एक बार फिर से समझा है। जिन लोगों का शारीरिक प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम औरों से मजबूत था, वे न केवल कोरोना संकट से काफी हद तक बचे रहे, बल्कि प्रभावित होने की स्थिति में उनके जल्दी ठीक हो जाने की दर भी काफी अधिक रही। जानकारों का कहना हैै कि जिस जमाने में खाद्य पदार्थों, फलों-सब्जियों और अनाजों के उत्पादन में रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता था, उस समय लोग प्राकृतिक बीमारियों और सामान्य संक्रमणों को आसानी से झेल लेते थे और उनकी उम्र भी लंबी होती थी।

लेकिन बाद में देश की बढ़ती आबादी की खाद्य संबंधी जरूरतें पूरी करने के लिए किसानों ने कृत्रिम रासायनिक खादों का उपयोग शुरू किया। इससे खाद्य पदार्थों की उपज तो खूब बढ़ी, लेकिन ऐसी उपज में पोषक तत्वो की कमी होती चली गई और शरीर में अधिक कृत्रिम रसायन घुलने-मिलनेे से लोग प्रतिरक्षा तंत्र के मामलेे में कमजोर व गंभीर बीमारियों का शिकार होते गए। रासायनिक खादों के प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति भी कमजोर होती गई और वर्तमान में दुनियाभर में उपजाऊ भूमि को अधिक से अधिक बचाने की मुहिम चल रही है।

चार वर्षों में होगा 20,000 करोड़ से बड़ा आकार

डाटा रिसर्च कंपनी एक्सपर्ट मार्केट रिसर्च (ईएमआर) का कहना है कि भारत में ऑर्गेनिक फूड बाजार का आकार वर्ष 2020 में 84.95 करोड़ डॉलर यानी करीब 6,371 करोड़ रुपये मूल्य का था। वर्ष 2021 से 2026 तक इसके 20.5 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई गई है। अगर ऐसा होता है तो वर्ष 2026 के अंत में भारत में ऑर्गेनिक फूड उत्पादों का बाजार 260 करोड़ डॉलर यानी 20,200 करोड़ रुपये मूल्य से अधिक का होगा।

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